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जो संपूर्ण प्राणियों के पति अर्थात नाथ हैं, जो पापों का नाश करने वाले हैं और श्रेष्ठ हैं, जो गजराज का चर्म पहने हुए हैं, जिनकी जटा-जूट में गंगा जी खेलती हैं, उन एक मात्र महादेव जी का मैं स्मरण करता हूँ। महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् ।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥
उन महेश्वर, देवेश्वर, देव दुख नाशक, विभु, विश्वनाथ, विभूति-भूषण, नित्य आनंद स्वरूप सूर्य, चंद्र और अग्नि जिनके तीन नेत्र हैं, मैं उन पाँच-मुख वेल भगवा महादेव की स्तुति करता हूँ।
जो कैलाशपति हैं, गणो के नाथ हैं, जिनका कंठ नीला है, जो बैल पर सवार हैं और अगणित रूप वाले हैं, इस विश्व के आदि कारण हैं, शरीर पर भस्म लगाए हुए हैं, श्री पार्वती जी जिनकी वामांगी हैं, उन पॅंच-मुख वाले महादेव की मैं स्तुति करता हूँ ।
हे गौरीपति! हे शम्भो! हे सिर पर चंद्र धारण करने वाले, हे महेश्वर! हे त्रिशूलधारी! हे जटाजूटधारी! आप ही इस विश्व में व्यापक हो! हे पूर्ण रूप प्रभो, प्रसन्न होइए! प्रसन्न होइए!
जो प्रमात्मा हैं, एक हैं, जो जगत के एक मात्र माध्यम हैं, इच्छा रहित हैं, निराकार हैं और ओंकार से जानने योग्य हैं और जिनसे संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति और पालन होता है और अंत में उसी में उसका लय हो जाता है, उन शंकर को मैं भजता हूँ। न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा ।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्ति तमीडे ॥६॥
N Bhumir-n Chapo N Vhinrn-Vayurn- Chaksh-maste n Tandra N Nidra N Grishamo N Sheetam NN Desho N Vesho N Ysyasti Murti-stri-murtim Tamide
जो न तो भूमि हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं, न ही आकाश हैं, न तो तंद्रा हैं और न ही निद्रा हैं, न तो गर्मी ऋतु हैं और न ही शीत ऋतु हैं, जिनका न कोई देश है और न ही वेश है, उन अमूर्त रूप त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूँ।
जो जन्म से रहित हैं, जो शाश्वत हैं, कारणों के भी कारण हैं, शिव प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, तुरियाव्स्थ हैं, अंधकार और अज्ञान, आदि और अंत से हीन हैं उन पावन् अद्वेत स्वरूप भगवान शिव की शरण में जाता हूँ।
हे सर्वशक्तिमान! हे विश्व मूर्ति! आपको नमस्कार है! नमस्कार है! हे चिदानंद (हमेशा आनंद में रहने वाले) मूर्ति! आपकी नमस्कार है! नमस्कार है! हे तप और योग की स्थापना करने वाले प्रभु, श्रुति और ज्ञान की स्थापना करने वेल भगवान शिव को नमस्कार है! नमस्कार है!
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र ।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥९॥
Praho Shool-paane Vibho Vishv-Nath Mahadev Shambho Mahesh Trietra Shivakaant Shant Smraare Puraare Twadanyo Varenyo N Manyo N GanyaH
हे प्रभु! हे त्रिशूल को धारण करने वाले! हे विश्वनाथ, हे महादेव! हे शम्भो! हे महेश, हे त्रिनेत्र धारी, हे पार्वती पति! हे शांत! हे त्रिपुरारी! आपके अतिरिक्त न तो कोई श्रेष्ट है, न माननीए है और न ही गणनीए है।
हे शम्भो! हे महेश! हे करुणामय! हे त्रिशूल धारी, हे गौरी पति! हे पशुपति! हे पशुबंध मोचन! हे काशीनाथ! एक आप ही की करुणा के कारण इस जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो! हे महेश्वर! आप ही इस के एक मात्र स्वामी हो।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मकं हर चराचरविश्वरूपिन् ॥११॥
Twatto Jagad-Bhvati Dev Bhav Smraare Tvye-yev Tish-thti Jagan-MruD Vishwnaath Tvye-yev Gac-hti Laym Jagadetdeesh Ling-aatmkam Har Chara-char-vishva-roopin
हे देव ! हे शंकर ! हे कामदेव हंता ! हे विश्वनाथ ! लिङ्गस्वरूप समस्त जगत तुममें से ही उत्पन्न होता है। तुममें ही जगत स्थित होता है। हे विश्वरूप धारी ! तुममें इस जगत का लय होता है।
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